गीत - जसवीर सिंह हलधर 

 
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जाति पाति की जनगणना में, हिलते संविधान चौपाये ।
नेहरू,जे.पी. के शहज़ादे,  ओबीसी पर नज़र गढाये ।।

दांत सींग नाखूनों वाले, खद्दर पहने दिखे खिलाड़ी ।
पान बताकर पीपल पत्ते , मानो बेच रहे पनवाड़ी ।।
मज़हब पर आधारित भाषण , राम एक है सौ हैं रावण,
सिंहासन की चाहत में कुछ नेता घूम रहे बौराये ।।
नेहरू जे पी के शहज़ादे , ओबीसी पर नज़र गढाये ।।1

कोई फ़िक्र नहीं करता है , भूख गरीबी लाचारी का ।
सत्ता और विपक्षी सारे , साध रहे हित व्यापारी का ।।
हर मुद्दे पर राजनीति है , चीन, पाक से निजी प्रीत है ,
देश जलाने बैठे नेता, जबड़ों में बारूद दबाये।।
नेहरू जे पी के शहज़ादे, ओबीसी पर नज़र गढाये ।।2

सड़कों पर कोलाहल करते ,संसद में पसरा सन्नाटा ।
लोकतंत्र में खोट बताते , रोज विदेशी सैर सपाटा ।।
भाषा तोड़ रही मर्यादा , तोड़ा संविधान से वादा ,
रोज डराते भारत मां को , मज़हब और जाति के साये ।।
नेहरू जे पी के शहज़ादे , ओबीसी पर नज़र गढाये ।।3

दूषित वातावरण हो रहा , सिर धुनती मीठी संधायें ।
पत्रकारिता भी दूषित है , कैसे झूँठी ख़बर पचायें ।।
भ्रष्टाचार सगा है सबका , बचा नहीं है कोई तवका,
मतदाता,करदाता दोनों , बैठे सुस्त और मुरझाये ।।
नेहरू जे पी के शहज़ादे , ओबीसी पर नज़र गढाये ।।4

भय की छाया में सोते हैं, आज देश के कस्बे , नगरी ।
लोकतंत्र पर आशा वाली ,फूट रही है मेरी गगरी ।।
हंसों पर हावी हैं बगुले , सत्य सनातन पर भी हमले ,
"हलधर" क्षुब्ध लेखिनी से अब ,कैसे मीठे गीत बनाये ।।
नेहरू जे पी के शहज़ादे ,ओबीसी पर नज़र गढाये ।।5
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  
 

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