गीत - मधु शुक्ला

 
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कभी-कभी पन्ने अतीत के , जब मन पलटा लेता है,
गुण अवगुण से पाया सुख दुख, ज्ञान हमें नव देता है।

दिशा बोध हो ठोकर खाकर, यह मत व्यक्त करें ज्ञानी,
कर्मवीर के लिए जगत में, प्रकृति बनी रहती दानी।
सदा सीखता रहता है जो, वह खुशियों को सेता है.... ।

पृष्ठ पुराने हो जाते पर, सीख युवा बन के रहती,
सही गलत की परिभाषा वह,अपने अनुभव से कहती।
मानव कल को पतवार समझ,जीवन नैया खेता है..... ।

जीवन की पुस्तक में अंकित, रहती है हर पल की छवि,
उन्हें प्रकाशित करता रहता, पावन मन आँगन का रवि।
सत्य ग्रहण करता शुचि मन से, बनता वही विजेता है...।
 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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