प्रेम की मर्यादा - सुनील गुप्ता

 
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चलें निभाएं 
प्रेम की मर्यादा
तोड़ें ना कभी
आपसी रिश्ता ये प्रेम का  !
किया जो वादा
उसे ना भूलाएं......,
ध्यान रखें सदैव साथी का !!1!!

धरा अंबर
मिलते नहीं यहाँ 
क्षितिज की ओर
चले दिखते ये मिलते सदा  !
सुनें दिल सदाएं 
और बढ़ते रहें .....,
तो, मिलती अवश्य मंज़िल सदा !!2!!

कठिन राहें
प्रेम की होती
आती हैं बाधाएं 
और होती प्रेम गली संकरी  !
पर, मन इच्छाएं
रखते जीवित सदैव.....,
हो ही आती आशाएं पूरी !!3!!

चलें साथ
निभाए ये जीवन 
हाथों में हाथ
और महकाए मन जीवन बगिया !
है पवित्र बंधन
दो शुद्धात्माओं का.....,
सदैव प्रसन्नता संग बाँटे खुशियाँ !!4!!

ध्येय एक
सदैव बनाए चलें
रख आशा विश्वास
श्रीप्रभु बंदगी मन से करते  !
मिले आराधना से
शक्ति संबल प्रेरणा.......,
वही हमें भवसागर से हैं तरते !!5!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान
 

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