नकाब - सुनील गुप्ता 

 
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(1)"न ", नगर-नगर,शहर-शहर घूम रहे हैं लोग 
             आजकल, पहने सच का नकाब  !
             कैसे पहचानें इनमें से कौन है सही....,
             ये तो पता लगाना मुश्किल है जनाब  !!
(2)"का ", काम के बहाने, ठगे जा रहे हैं लोग
               सभी पर विश्वास भी करना ठीक नहीं  !
               पर, करें तो क्या करें ऐ मेरे भाई.....,
               सभी पर, शक करना भी तो उचित नहीं  !!
(3)"ब ", बदनियति का पता लगाना है आसान नहीं
     लोग पहने घूमते हैं भोलेपन का नकाब  !
     समयानुसार ही लेना होता है यहां पर निर्णय.....,
     माथे पे कहां किसके लिखा होता है जनाब !!
(4)"नकाब ", नकाब छुपाए है सच कुछ देर के लिए
            पर, हमेशा के लिए नहीं असलियत को यहां !
            पहले ठहरें, रुकें कुछ देर के लिए.....,
            और फिर सोच समझकर करें निर्णय यहां !!
(5)"नकाब ", नकाब के पीछे के सच को ग़र है जानना
  तो, पहले जानें उसकी मंशा को हम यहां  !
  फिर उसकी आँखों में आँखें डालकर करें बातें..,
  तो,असत्य ख़ुद-ब-ख़ुद बाहर निकल आएगा यहां  !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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