मेरी कलम से - मीनू कौशिक
Feb 6, 2024, 23:14 IST
नीम की छांव , जाने कहाँ खो गई,
माँ की लोरी , कफ़न ओढ़कर सो गई ।
लीलकर सारा , चैन-ओ अमन , उन्नति,
अपनी साज़िश में , जैसे सफल हो गई ।
गफलती नींद में , सोए हैं हम यहांँ,
लुट गई , रिश्तों की संपदा सब वहाँ ।
लौट जाओ , संभालो जरा पांव को ,
फिसलनी ये डगर , लेके जाए कहाँ ।
✍️ मीनू कौशिक 'तेजस्विनी ' , दिल्ली