मेघ हठीले -  डा० क्षमा कौशिक

 
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मेघ हठीले अब जिद छोड़ो 
थम भी जाओ,
बहुत हुआ गर्जन तर्जन अब  
मत गहराओ।
भीग गया धरती का अंतर भीगे 
अंग प्रत्यंग, 
थम भी जाओ मत इतराओ 
ओ  रे मेघ मलंग!
काहे को तुम रोष दिखाते 
क्या है मन में ठानी,
जाओ न,अब उत बरसो
जित सूखी है धानी ।
-  डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड 

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