मन कहता है - प्रीति यादव
Sat, 18 Mar 2023

मन कहता है.. फिर आज एक कविता लिखूं I
हृदय के किसी भाव को शब्दों में पिरोकर देखूँ I
पर भाव हीन सा हृदय ,शब्द हो गए हैं शून्य..I
संवेदना की कोई भी लहर अब हो गयी न्यून I
कौन...से भाव हृदय पर अनुभूत हैं अब भारी ?
दुख-सुख,प्रेम-घृणा,क्रोध,संताप खो गई सारी I
हाँ... सदा शांत ही रहना मन को है अब भाता ?
भावनाओं की उथल-पुथल में मन नहीं भरमाता l
प्रेम के आवेग में बहना, क्रोध के आवेश में कहना,
घृणा या इर्ष्या में तप्त होना,किसी को खोकर रोना,
ये कहाँ अब..खाली सा है हृदय का हर एक कोना I
शांत चित्त और निश्चिंत होकर मन चाहता है सोना I
ये सोच,ये विचार क्या ये साध्वी बनने की है तैयारी?
हा हा..नहीं अभी तो इतनी उमर भी नहीं है हमारी I
- प्रीति यादव, इंदौर, मध्यप्रदेश