भीड़ - सुनील गुप्ता
Fri, 5 May 2023

भीड़ से बचता, बचाता चल रहा
फिर भी भीड़ से अलग नहीं हूं !
जाऊं कहां ये समझ नहीं पाऊं.......,
दूर अपने से होता जा रहा हूं !!1!!
चहुँओर देख भीड़ ही भीड़
जाऊं कहां, सूझती नहीं है राह !
ख़ुद से ही भागा जा रहा हूं.....,
जमाने की करे है कौन परवाह !!2!!
चलते जाना जब तक है यहां जीवन
भीड़ से दूर, निकल आना भी संभव !
फिर भी भीड़ के बने हम हिस्से.....,
और भीड़ से बच पाना है असंभव !!3!!
ख़ुद को करके हवा के हवाले
ख़ुद ही जा रहे हैं बहते !
अपनों से होके परेशां बहुत........,
शायद ही निकल पाएंगे यहां से !!4!!
भीड़ से हटके अनजां सफर पे
चलना बन गया ज़िन्दगी का शगल है !
अपने को कहां तक हम बचाएं.....,
रहा एतबार नहीं, ज़िन्दगी कल पे हमें है !!5!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान