मोहे रंगो ना ऐसे गुलाल - सविता सिंह
Mar 31, 2024, 23:32 IST
वासंती परिवेश का उतरा न था खुमार,
हर्षित तन मन कर गया फागुन की बौछार।
हल्के हल्के वेग से जब-जब चले पवन,
राह पर सूखे पत्तों के स्वर करते झनझन।
नेपथ्य में चलचित्र की भांति उठने लगी तरंग,
याद करके उन क्षणों को मन हुआ मस्त मलंग।
दो आंखें करती थी पीछा आते जाते हर वक्त,
राह से जब भी गुजरे उसके धड़कन करती धक।
तरुणायी, मदमायी या फागुन ही थी बौरायी,
जल्दी-जल्दी भागी फिर तो रमणी वो सकुचाई।
जी करता था रंग दे सबसे पहले वो इस बार,
फिर चाहे कोई लगाये रंग कुछ नहीं सरोकार।
बड़े वेग से उसने फिर फेंका हवा में गुलाल,
तन छुए बगैर ही मन रंग दिया रंग लाल।
कितने होली आए गए बिन छुवन वो स्पर्श,
गाल गुलाबी कर जाता गुजरी होली हर वर्ष।
- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर