मां - डॉ० ममता जोशी

 
pic

मां तुम्हारे रूप को मैं, क्या भला लिखूं,
मां तुमने मुझको है रचा, मैं तुमको क्या लिखूं।
रचते ही मुझको तुमने, अपना रूप गंवाया,
आते ही मुझको पहले, हृदय से लगाए,
जीवन मिला है तुमसे , मातु जन्मदाता लिखूं,
मां तुमने मुझको है रचा , मैं तुमको क्या लिखूं।
रोने से पहले तुमने मुझे, दूध पिलाया,
जो भी जिद की, तुमने मुझे वही दिलाया,
ममता के मूरत मैं तुम्हें ,मां सदा लिखूं,
मां तुमने मुझको है रचा, मैं तुमको क्या लिखूं।
डांटा सदा है उसमें, अपनापन भी दिखाया,
संस्कृति व संस्कारों को मां ,खूब सिखाया,
प्रथम गुरु हो तुम ,तुम्हें मैं ज्ञानदा लिखूं,
मां तुमने मुझको है रचा , मैं तुमको क्या लिखूं।
अच्छाई और बुराइयों में, फर्क सिखाया,
मां तुमने मुझको नित्य, नेक पथ भी दिखाया,
गर्व से मैं तुमको, मार्गदर्शिका लिखूं,
मां तुमने मुझको है रचा, है तुमको क्या लिखूं।
- डॉ० ममता जोशी स्नेहा
टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड

Share this story