माँ - झरना माथुर

 
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ये माँ शब्द ही नही एक खूबसूरत एहसास है,
नारी के सम्पूर्णता का सफ़र बहुत खास है।

माथे पे लाल बिंदिया , मुस्कुराता वो चेहरा,
हृदय में ममता, त्याग,समर्पण जिसके पास है।

माँ-बाप की वो लाड़ली, भाई- बहन की प्यारी,
अब उसके आंचल में भी  ममता की प्यास है।

निष्छलता से भरा यशोदा का लाड़ला कन्हैया,
लक्ष्मीबाई का पुत्र नही  कोई परिहास है।

सारे दुख दर्दो को स्वयं अपने में समेटे हुए,
वो कभी दुर्गा और कभी चन्डी का आभास है।

सारे घर की जिम्मेदारी निभाने के लिए,
मुख पे मुस्कान लिये दिन का करती आगास है।

हर समस्या का समाधान भी उसके पास है,
इसीलिए तो हरेक की सिर्फ माँ से ही आस है।

माँ को बनाने वाला वो खुदा भी हैरान है,
क्योंकि माँ के चरणों मे तो तीरथ का वास है।

इसीलिये माँ होने का एहसास सबसे खास है,
जहाँ होता माँ का सम्मान वो घर कैलाश है।
- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड
 

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