मोती का सपना (कहानी) - भूपेश प्रताप सिंह 

 
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Utkarshexpress.com - बरसात बीत चुकी थी। खेत में धान की फ़सल कट चुकी थी। अब तो मौसम में भी काफी ठंडक बढ़ती जा रही थी। नहर में पानी न आने के कारण खेत की भराई न हो सकी थी। इसके कारण खेत में इतनी नमी नहीं थी कि गेहूँ या सरसों की बुवाई की जा सके।रविवार का दिन था।घर के सभी लोग बैठे थे कि पड़ोस में रहने वाले रामू काका आ पहुँचे।कोई उनसे कुछ बोलता इससे पहले ही वे बोले, "तुम सब सुबह -सुबह बैठकर गप्पे लड़ा रहे हो, लगता सारा कुछ आज ही बोलना है।नहर में पानी आ गया है।रात को मुझे मुझे कुछ तकलीफ थी तो नींद नहीं आ रही थी ,थोड़ी ठण्ड भी लग रही थी।मुझे तो उसी समय पानी की हरहराहट सुनाई पड़ रही थी।अभी देखकर आ रहा हूँ तो पानी का बहाव बहुत तेज़ है। तुम लोग अपना खेत दवार लो।दवारने  पर खेत में बीज जल्दी बोये जा सकते हैं ।" बात तो रामू काका सौ टका सही कह रहे थे।पूरा खेत भर देना आसान था लेकिन इस ठण्ड में मिट्टी पकने में बीस दिन से जाता लग जाते । पछेती बुवाई करने पर अच्छी पैदावार नहीं होती।मार्च के बाद चलने वाली गर्म हवा पौधों को सुखाने लगती है ।दाने या तो पड़ते ही नहीं या बहुत कमज़ोर हो जाते हैं।अगर खेत में पानी के लिए दस-दस हाथ पर पतली नालियाँ बना दी जाएँ और दोनों तरफ खेत को दवार दिया जाए तो तीन से चार दिनों में ही बुवाई की जा सकती है।सबने तय किया कि आज यही काम कर लिया जाए।
अभी विचार बन ही रहा था कि  मोती ने कहा -"दादा जी , मैं तो खेत में नहीं चलूँगा।"
'क्यों,सब तो चलेंगे ,तुम्हें क्या परेशानी है ?'
'मैं मेला देखने जाऊँगा।'
'हाँ-हाँ, बिलकुल चलेंगे।हम सभी चलेंगे लेकिन आज नहीं कल चलेंगे।'
'मैं तो आज ही जाऊँगा।' मोती अपनी ज़िद पर उतर आया।
दादा जी को उसका यह व्यवहार अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन बात वही थी कि नंगा तो खुद को खुदा समझता है ।फिर भी किसी तरह समझा- बुझाकर खेत पर ले गए। बहुत देर हो गई थी इसलिए काम पूरा होते-होते रात हो गई ।अब आज मेला देखने का कोई सवाल ही नहीं था।काम करते-करते सभी लोग थक गए थे।खाना खाने के बाद जल्दी ही सो गए।मोती की आँखों से नींद गायब थी ।कभी झपकी लगती तो कल्पनालोक में खो जाता।भालू ,बंदर,गैंडे घूमते नज़र आते। जब ध्यान छूटता तो घड़ी पर नज़र पड़ती । वह सुबह होने की प्रतीक्षा में था लेकिन समय किसी का गुलाम नहीं होता ।घड़ी की सुइयाँ अपनी गति से ही घूम रही थीं।जिसकी जितनी अधिक ज़रूरत उसकी चाल उतनी ही कम ।घंटे को बताने वाली मिनट से धीमी चल रही थी और मिनट की तो सेकंड से भी धीमी।मोती का दिमाग सेकंड की सुई के साथ ताल मिला रहा था।अचानक उसे नींद आ गई ।फिर क्या था !वह चिड़ियाघर  के अंदर पहुँच गया।चाइनीज़ मुर्गा , केले खाते बंदर  और उसके गंदे सिर से जूँ निकालती बंदरिया , बड़े -बड़े बालों वाला मरियल भालू ,लोहे के पिंजड़े में बंद भूखा शेर सब एक ही कतार में थे ।शाकाहारी और मांसाहारी को साथ देख उसे बहुत चिंता हो रही थी ।शेर के दहाड़ने पर रोने जैसे आवाज़ आती थी ।उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब यहाँ क्यों बंद हैं ।उसे खुशी नहीं हुई ।वह घबरा रहा था।अब चिड़ियाघर से निकलकर वह सौ रुपये का टिकट लेकर सरकस में गया ।वहाँ का नज़ारा अद्भुत था।हाथी अपने सूँड से बल्ला पकड़ रखा था ।जब भी उसका मालिक गेंद फेंकता तो वह चौका लगाता था ।अब हाथी को यही काम रह गया ।मोती यहाँ भी परेशान था।अगले ही पल उसने देखा कि एक छोटी लड़की पतली रस्सी पर पैरों के सहारे आगे बढ़ रही है ।सभी लोग तालियाँ बजा रहे हैं।ये कैसे लोग हैं ।अगर उसका संतुलन बिगड़ जाए तो जान जा सकती है ।इसके बाद दूसरा खेल शुरू हुआ।वह लड़की लकड़ी के एक पटरे के आगे पीठ लगाकर खड़ी हो गई ।एक लड़का अपनी आँखों पर पट्टी बाँधे उसके दोनों तरफ लोहे की धारदार चाकुओं को फेंक रहा था ।वे चाकू लड़की के चारों ओर लकड़ी में गड़ गए लेकिन उसे खरोच तक नहीं आई। चाकू फेंकने वाली की यह कलाकारी भी लोगों को खूब पसंद आई।पूरा तंबू तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।अब जादूगर ने भी जादू दिखाना शुरू किया।एक ही डिब्बे से कभी तोता तो कभी मुर्गा निकाल कर दिखाता।एक रूमाल को लपेट कर गोली बनाया और जब उसे उछालने लगा तो रूमाल-ही-रूमाल दिखने लगे ।अब मोती को आनंद आने लगा था।तभी दादा जी ने पुकारा,"मोती,आज सोते ही रहोगे क्या ? जल्दी उठो ,आज तुम्हें मेला दिखाने ले चलूँगा ।"
“नहीं दादा जी , चिड़ियाघर ,सरकस और जादू सब तो देख लिया।"- मोती ने चहकते हुए कहा।
दादा जी ने विस्मय से पूछा ,"देख  लिया ! लेकिन कब ?"
"आज पूरी रात यही तो देखता रहा।मुझे सब याद भी है।"कहते हुए मोती हँस पड़ा।मोती को हँसता देख दादा जी के चेहरे पर एक प्यारभरी मुस्कान थिरकने लगी।बिना खर्च किए मेला देखने का यह अनोखा अनुभव था।
- भूपेश प्रताप सिंह, दिल्ली, फोन नंबर - 8826641526

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