मुक्तक (होली)- जसवीर सिंह हलधर 

 
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सतयुग से कलगुग तक आयी रीति पुरानी होली की ।
सबको एक रंग में रंगती बात सुहानी होली की ।।
जीत गए प्रहलाद आग से जली होलिका रानी थी ,
पर्व सिखाता है जन जन को  प्रीत रूहानी होली की ।।

भीग भीग कर खजुराहो की मूरत जैसी दीख रही है ।
रंगों के इस महापर्व में राधा बनना सीख रही है ।।
नारी से नर का आलिंगन नैसर्गिक  संयोग रहा है ,
प्रणय निवेदन दोनो में ही युगों युगों से लीख रही है ।।
:- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  
 

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