मुक्तक  (नेपाली) - दुर्गा किरण तिवारी

 
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गौरव-गाथा बोकेको मेरो देश कुरूप भयो, दिक्क लाग्छ !
दलालहरूको हातको बास्सा र तुरुप भयो, दिक्क लाग्छ !
विश्वमै ठाडो शिर पार्ने सगरमाथा नै झुकाउन खोज्दैछन् 
नीति नै बिग्रेर राष्ट्र, राष्ट्रियता विरूप भयो, दिक्क लाग्छ !!
मुक्ति (हिंदी) -
गर्व और गाथा लेकर मेरा देश बदसूरत हो गया है, मैं परेशान हो रहा हूँ!
दलालों के हाथ की गंध और तुरही हो गई, कष्टप्रद!
दुनिया में एवरेस्ट झुकाने की कोशिश कर रहा है
राष्ट्र और राष्ट्रीयता नीति के खिलाफ हो गई, मुझे गुस्सा आ रहा है !!
- दुर्गा किरण तिवारी, पोखरा,काठमांडू , नेपाल 

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