मुक्तक (नेपाली) - दुर्गा किरण तिवारी
Nov 16, 2023, 23:38 IST
थियो रहर किन्ने लाउने हेरिन नयाँ सारी,
लगाएँ थोत्रा पुरानै तर बेरिन नयाँ सारी,
महङ्गाे भो बजार फलामको चिउरा जस्तै,
तिज आयो गयो बरै फेरिन नयाँ सारी ।।
,सबै एक छैनन
मुक्ति (हिंदी) -
मन था नई साड़ी खरीदने और देखने की,
थोड़ी पुरानी पहनी लेकिन नई साड़ी लिपटी हुई,
बाज़ार लोहा चिउरे की तरह महँगा हो गया है,
तीज आई गई नई साडी बदल गई,
सब एक नहीं होते।
- दुर्गा किरण तिवारी, पोखरा,काठमांडू , नेपाल