मुन्नी - जया भराडे बडोदकर

 
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utkarshexpress.com - एक जमाना था जब नवी दसवीं, ग्यारहवीं की कक्षाओं में जीव विज्ञान रसायन विज्ञान भोतिकी विज्ञान गणित की धडल्ले से टयूशन चला करतीं थीं, कमलेश तिवारी मेंडम की तो बहुत चांदी होने लगी थी तिवारी सर जो गणित के अध्यापक थे सारे बच्चे चारों विषय एक ही जगह पढने आने लगे। इनके परिवार में बहुत सदस्य थे दोनों देवर कालेज में पंढ रहे थे तीन ननद थी भरा पुरा परिवार था। घर मे एक औरत पारो थी ज़्यादातर सारे  काम झाड़ू पौंछा बरतन कंपडै ओर खाना बनाने का काम भी करती थी। सुबह आठ बजे आती चार बजे तक काम करके चली जाती। उसको तीन बच्चे ऐक लडकी मुन्नी  आठ वर्ष की और दो लटके छोटे छोटे थे। 
चारो बच्चों को साथ ही ले कर आ जाती बच्चों को जीने में छोड़ दिया करती रात की रोटी अचार खिला दिया करती। 
मैडम कै घर में ओर भी बहुत काम होते आटा पिसाना, सबजी लाना,  वो सारे काम मुन्नी ही करतीं  एक दिन बहुत हो हल्ला मचा देवर जोर जोर  से मुन्नी पर चिल्ला रहा था कि उसने बड़ा कटोरा चुरा लिया है। आठ बरस की मुन्नी कया समझती लाचार माँ पारो ने मुन्नी को मारना चालू कर दिया देवर ने पुलिस को बुला लिया पुलिस बेकसूर गरीब मुन्नी को पकड़ के लै गई। पारो का काम छूट गया उस पर मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पडा बच्चों को साथ लेकर अपने गाँव चली गई। ईधर चार दिन बाद गेहूँ पीस कर आटे का डिब्बा घर आ गया तो मेडम ने देखा वो कटोरा आटे में पड़ा है तो हक्की-बक्की रह गई। अब उस को अपने आप पर ग्लानि-नफरत होने लगी उस ने गरिब बेबस मुन्नी को बहुत बड़ी सजा दी थी। 
कमलेश मैडम ने मुन्नी को पुलिस से छुडाथा घर लेकर आ गई। अब मुन्नी मैडम के यहाँ उनकी बेटी बनकर बडी़  होने लगी। मेंडम ने पारो का पता लगाने के लिए बहुत कोशिश की पर सब कोशिश बेकार हो गई, मुन्नी बडी़ हो कर एक पुलिस अफसर  बन गई। पर अपने बचपन की कषट उठाते माँ छोटे भूखे भाईयो को कभी भूला नहीं पाई, मेडम ने मुन्नी  का जीवन बदल दिया था। ईश्वर का यह कैसा न्याय था उसे कभी समझ में नहीं आया। - जया भराडे बडोदकर, टाटा  सेरीन, ठाने,  मुम्बई, महाराष्ट्र

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