मेरे आराध्य मेरे मोहन - सविता सिंह
Feb 12, 2024, 22:46 IST
काश होता उस वक्त अवतरण,
उस इतिहास का करती विचरण।
जहाँ वृषभानुजा के संग में,
निशदिन रास रचाते थे किशन।
या फिर वो महलों को त्याग कर,
किया वन उपवन मंदिर में गमन।
गरल को जिसने कर दिया सुधा,
देखती भक्ति मीरा के मोहन।
माखन जब तक न करते चोरी,
हलधर संग वो जोरा जोरी।
गगरी को फोड़ना ना माना.
देखते हम यशोदा के कान्हा।
चीरहरण का हृदय विदारक दृश्य,
लाज बचाई यज्ञसेनी की।
दुराचारियों ने मात चखा,
कैसे थे द्रौपदी के सखा ।
काश होता उस वक्त अवतरण,
देख पाती हर वह एक प्रकरण।
साक्षी होती हर एक पल की,
हो जाती नटवर की जोगन।
- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर