नायक रंजीत सिंह, वीर चक्र (मरणोपरान्त)- हरी राम यादव

 
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utkarshexpress.com - भारतीय शांति सेना द्वारा श्रीलंका में जाफना को लिट्टे के कब्जे से मुक्त कराने के लिए 11 अक्टूबर 1987 को ऑपरेशन पवन शुरू किया गया था। इसकी पृष्ठभूमि में भारत और श्रीलंका के बीच 29 जुलाई 1987 को हुआ वह शांति समझौता था, जिसमें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी और श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री जे0 आर0 जयवर्धने ने हस्ताक्षर किया था। समझौते के अनुसार, श्रीलंका में जारी गृहयुध्द को खत्म करना था। इसके लिए श्रीलंका सरकार तमिल बहुत क्षेत्रों से सेना को बैरकों में बुलाने और नागरिक सत्ता को बहाल करने पर राजी हो गई थी। वहीं दूसरी ओर तमिल विद्रोहियों के आत्मसमर्पण की बात हुई, लेकिन इस समझौते की बैठक में तमिल विद्रोहियों को शामिल नहीं किया गया।
श्रीलंका सरकार ने तमिल ईलम की इस मांग को न सिर्फ नजरअंदाज किया, बल्कि तमिलों के असंतोष को सेना के दम पर दबाने का प्रयास करने लगी। इस दमन चक्र का परिणाम यह हुआ कि श्रीलंका से तमिल नागरिक बतौर शरणार्थी भारत के तमिलनाडु में भागकर आने लगे। यह स्थिति भारत के लिए काफी शोचनीय थी इसीलिए श्रीलंका के साथ हुए समझौते में भारतीय शांति सेना का श्रीलंका जाना तय हुआ।
08 अप्रैल 1989 को पकड़े गए एक हार्ड कोर आतंकवादी द्वारा दी गयी  जानकारी के आधार पर 10 सशस्त्र आतंकवादियों के एक समूह को खत्म करने के लिए 5 पैरा रेजिमेंट द्वारा एक छापा मारा गया। नायक रंजीत सिंह विशेष रूप से चयनित उस छापेमारी टीम के सदस्य थे । जब यह छापामारी दल आतंकवादियों को खोजता हुआ एक घर में पहुंचा तो आतंकवादियों ने उस छापामारी दल पर भीषण फायरिंग कर दी। आतंकवादियो द्वारा की जा रही फायरिंग पर सेना द्वारा जल्दी ही नियंत्रण कर लिया गया। नायक रंजीत सिंह ने यह महसूस किया गया कि घर में छुपे आतंकवादी उत्तर दिशा की ओर भागने की कोशिश कर रहे हैं। तब सेना के  इस छापामारी समूह को दो भागों में विभाजित किया गया। 
नायक रंजीत सिंह ने देखा कि दो आतंकवादी नंबर एक टीम पर जबरदस्त फायर कर रहे हैं  जिससे उस टीम का आगे बढ़ना धीमा हो गया है। नायक रंजीत सिंह ने सोचा  कि समय कम है और आतंकवादी उनकी टीम से दूर होते जा रहे हैं। उन्होंने दूसरी तरफ से जाकर आतंकवादियों पर प्रहार किया और एक आतंकवादी को मार गिराया। एक आतंकवादी को मारने के बाद उन्होंने दूसरे आतंकवादी को अपने अचूक निशाने से घायल कर दिया लेकिन वह भागने में सफल रहा। नायक रंजीत सिंह जैसे ही आड़ से बाहर निकले तो एक तीसरे आतंकवादी ने उन पर फायर कर दिया । आतंकवादी द्वारा फायर की गयी गोली सीधे नायक रंजीत सिंह के सीने में लगी। उन्हें तुरंत कायत्स सिविल अस्पताल ले जाया गया लेकिन ज्यादा घायल होने के कारण भारत मां का यह अमर सपूत वीरगति को प्राप्त हो गया।
नायक रंजीत सिंह ने आतंकवादियों से चल रहे इस संघर्ष में अदम्य साहस, निडरता, युद्ध कौशल और वीरता का परिचय दिया । उनके इस साहस, वीरता और बलिदान के लिए उन्हें 26 जनवरी 1990 को मरणोपरान्त वीर चक्र से अलंकृत किया गया।
नायक रंजीत सिंह का जन्म 01 जुलाई 1960 को दुघरा, गोलाबाजार जनपद गोरखपुर में श्रीमती राजेश्वरी सिंह तथा श्री रमाशंकर सिंह के यहां हुआ था। इन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा सन 1976 में श्री मोतीलाल इंटर कालेज दुघरा तथा इंटर की शिक्षा वर्ष 1978 में श्री राम रेखा सिंह इंटर कालेज उरुमा बाजार से पूरी की और 20 जुलाई 1978 को भारतीय सेना में भर्ती हो गए । सैनिक प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात वह 5 पैरा रेजिमेन्ट में तैनात हुए।  नायक रंजीत सिंह का विवाह श्रीमती सुमित्रा देवी के साथ हुआ। इनके 02 बच्चे - कंचन सिंह (बेटी) तथा चित्रांगद सिंह (बेटा) है। 
हमारे देश में जब कोई सैनिक सीमा पर वीरगति को प्राप्त होता है तो हमारे देश के नेता और अधिकारी सैनिक के घर जाकर खूब घड़ियाली आंसू बहाते हैं। सहायता राशि देते समय भी फोटो खिंचवाने की जुगत में लगे रहते हैं जिससे की सोशल मीडिया पर उस फोटो को डालकर वाहवाही लूटें। उस समय देखकर ऐसा लगता है कि इनसे बड़ा उस परिवार का कोई और शुभचिंतक नहीं है। लेकिन कुछ दिनों बाद जब वही परिवार इनके पास अपने अमर सपूत के लिए किसी काम से जाता है तो यह माननीय लोग उन परिवारों से अपरिचित सा व्यवहार करते हैं।

नायक रंजीत सिंह, वीर चक्र का परिवार भी इस तरह की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। नायक रंजीत सिंह, वीर चक्र की वीरता और बलिदान आज भी प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है।  नायक रंजीत सिंह की वीरता और बलिदान को याद रखने के लिए राज्य सरकार और गोरखपुर के जिला प्रशासन द्वारा कोई भी कदम नहीं उठाया गया है।  प्रशासनिक उपेक्षा से दुखी होकर नायक रंजीत सिंह के परिजनों ने अपने वीर सपूत की यादों को अमर बनाए रखने के लिए अपने खर्चे से अपने गांव को जाने वाली सड़क पर एक शौर्य द्वार का निर्माण करवाया है।
   हमारे उत्तर प्रदेश के वीरता पदक विजेता / परिवार राज्य सरकार की अनदेखी के शिकार हैं। वीरता पदक विजेताओं / परिजनों को वार्षिकी के रुप में दी जाने वाली राशि केवल 30 वर्षों तक ही दी जाती है, जबकि देश के अन्य कई राज्यों में वार्षिकी आजीवन दी जाती है। हमारे इन सम्माननीय पदक विजेताओं ने देश और समाज के लिए अपने जीवन को दांव पर लगाया है इसलिए सरकार को मानवीय पहलू पर ध्यान देते हुए वार्षिकी को आजीवन करना चाहिए। यदि सरकार इस विषय पर सकारात्मक  निर्णय लेती है तो यह उत्तर प्रदेश के वीरता पदक विजेताओं का सम्मान होगा और नायक रंजीत सिंह जैसे मरणोपरांत वीरता पदक विजेताओं के परिजनों के लिए गर्व का पल होगा।
 - हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश।  फोन नंबर - 7087815074
 

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