प्रकृति संतुलन - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

 
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 (आधार छन्द - वाचिक स्रग्विणी)

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ग्रीष्म का हो गया है पुनः आगमन,

देखते देखते बढ़ गई है तपन।

ताप इतना बढ़ा झेल पाते नहीं,

ज्यों धरा कर रही हर जगह पर हवन।

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छाँह को खोजते है परिंदे पथिक,

जानवर बेकली से निहारें गगन।

बूँद जल की हुईं लुप्त हर ओर से,

प्यास से है विह्वल आज प्रत्येक मन।

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गर्मियों में नहीं जीव प्यासे रहें,

ताल-नदियाँ भरें मेघ बरसें सघन।

हैं जरूरी बहुत सर्दियाँ गर्मियाँ,

संतुलित चक्र मौसम करे मगन।

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश
 

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