नज़रिया - सुनील गुप्ता

(1)"न ", नज़रिये के पिंजरे में
कैद क्यूं है !
दुनिया के डर से......,
भयभीत क्यूं है !!
(2)"ज़ ", ज़रा बाहर आके तो देख
फैला है अनंत आसमां !
तुझे उडने से किसने है रोका....,
दिल खोल के भर परवाज़ यहां !!
(3)"रि ", रिरियाता है तू क्यूं यहां पर
बसती तुझमें शक्ति प्रबल है !
किससे डरता है तू यहां पर.....,
तेरा मालिक तू ही ख़ुद है !!
(4)"या ", यायावर है तेरा जीवन
ठहरा क्यूं तू बनके निस्तेज़ !
चलता चल तू सदैव यहां पर.....,
0सजाए चल तू जीवन सेज़ !!
(5)"नज़रिया ", नज़रिया बदले तो बदले दुनिया
अपनी नज़र में श्रेष्ठ बनें हम !
महकाएं चलें अपनी मन बगिया.....,
तोड़ें सभी तमसावृत यहां हम !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान