कभी न बनो विभीषण भाई - हरी राम यादव
परि परिजन परिवार छोड़कर,
बनते हैं विभीषण जो लोग ।
पीढ़ी दर पीढ़ी के जीवन में,
लगता गजब कलंक का रोग।
लगता गजब कलंक का रोग,
योग कोई भी काम न आता।
अपनों से भितरघात का यह,
दाग़ कभी भी न है धुल पाता।
गलत को सही साबित करते ,
जीवन तिल तिल कट जाता ।
अपनों से धोखा करने वाला,
सदा अधम दृष्टि से देखा जाता।
जो अपनों से करके धोखा,
औरों की पकड़ते हैं बांह ।
जीवन भर वह भटकते रहते,
मिलती कभी न उनको छांह।
मिलती कभी न उनको छांह,
राह भी उनसे है कतराती ।
शंकालु आंख से देखें जाते,
कोई बनता न उनका साथी।
नाम जगत में बदनाम ऐसा,
कोई न उस नाम को दोहराता।
ले लिया नाम जब ऐसों का,
समाज गाली उसे समझ जाता।।
- हरी राम यादव म बनघुसरा, अयोध्या
(उत्तर प्रदेश), फोन नंबर - 7087815074