अब हँसी उड़े संविधान की - डॉ. सत्यवान सौरभ

 
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संसद में मचता गदर, है चिंतन की बात, 
हँसी उड़े संविधान की, जनता पर आघात।

भाषा पर संयम नहीं, मर्यादा से दूर,
संविधान को कर रहे, सांसद चकनाचूर।

दागी संसद में घुसे, करते रोज मखौल,
देश लुटे लुटता रहे, खूब पीटते ढोल।

जन जीवन बेहाल है, संसद में बस शो,
हित सौरभ बस सोचते, सांसद अपनी ओर।

संसद में श्रीमान जब, कलुषित हो परिवेश,
कैसे सौरभ सोचिए, बच पायेगा देश।।
 
लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात,
संसद में चलने लगे, थप्पड़, घूसे, लात।

जनता की आवाज का, जिन्हें नहीं संज्ञान,
प्रजातंत्र का मंत्र है, उन्हें नहीं मतदान।

हमें आज है सोचना, दूर करे ये कीच,
अपराधी नेता नहीं, पहुंचे संसद बीच।
-डॉ. सत्यवान सौरभ,
 

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