अब न कुछ आस - सविता सिंह

 
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क्या कहें  हम उनसे बातें अब रूहानी, 
उनसे  अब  ना आस  की संभावना है| 

जिक्र जिनका मेरी अक्षर में था अक्सर, 
वह   सदा  करते   मेरी  आलोचना  है| 

प्रेम और अनुराग से सिक्त था हृदय जो, 
अब   हमारे  दिल  से  उठती  वेदना है| 

मेरे दिल को यह भरम  कुछ हो गया था, 
उनके  दिल  में  कुछ  बची  संवेदना है| 

क्यों बतायें  हम कुछ भी अब  व्यथाएँ, 
अंतस  में  हुई जागृत अब  चेतना  है| 

ऐसा  कुछ कुछ अब अंदेशा लग रहा है|,
भेजना    वो   चाहते   प्रस्तावना  है|

अब  हमें  न  बैर  है  ना कुछ भी उनसे,
अंकुरण अब  स्नेह  का  हो  कल्पना है|   

लक्ष्य मेरा अब उन्हीं  पर जाकर ठहरा,  
करना  मुझको बस उन्हीं की साधना हैं| 

तेरे  चरणों में  समर्पित अब ये तन मन, 
"मीरा" को करना "मोहन" की अर्चना है|
- सविता सिंह मीरा , जमशेदपुर
 

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