स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं हमारे विचार - सुदर्शन भाटिया

 
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utkarshexpress.com - हमारे विचारों का हमारे शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है यदि विचार अच्छे हैं, आशावादी हैं, स्वस्थ हैं तो शरीर भी निरोग रहता है, तन्दुरुस्त रहता है। प्रत्येक अंग अपना कार्य ठीक से कर सकते हैं। यदि स्वास्थ्य ठीक न हो तो हमारा जीना दूभर हो जाता है। अत: अपने मन को, अपने विचारों को कभी निराशा से न घिरने दें।
मन विचारों का भण्डार है। पूरा सिन्धु है। अनन्त कोष है। मन कभी आराम से नहीं रहता। सदा कार्य करता रहता है। इसमें कोई न कोई विचार हर समय चलता ही रहता है।
ध्यान रहे कि हमारे मनोमस्तिष्क में अक्सर जिस प्रकार के विचार चलते रहते हैं जिनके साथ हम अपने अहम् को जोड़ लेते हैं, वैसी ही हमारी चेतना और शरीर बन जाता है। इसीलिए तो कहा है कि मन में हानिकारक विचार उठने ही न दें। यदि उठें तो इन्हें तुरन्त झटक दें। जितना जल्दी हो, उन्हें निकाल फेंके। तभी तो रह सकेंगे स्वस्थ और क्रियाशील।
हानिकारक विचारों को अपने मन में न आने दें बल्कि इसकी जगह लाभदायक विचार पालें। यदि निराशा है तो आशा लाने का प्रयत्न करें। यदि भय है तो निडर होने की कोशिश करें। यदि असफलता का आभास होने लगा है तो सफल होने की ही सोचें। घृणा का विचार उठता है तो इसकी जगह प्रेम जगाएं। गिरने का डर है तो उठने का प्रयत्न करें।
बीमार पड़ गए हैं तो यह न सोचें कि बीमार ही रहेंगे। सोचें कि आप शीघ्र ठीक होंगे और जरूर होंगे। सोचें कि आप सदा स्वस्थ रह सकते हैं। रोग का क्या आज नहीं तो कल दुम दबाकर भाग खड़ा होगा। पूर्ण स्वस्थ रह सकने की बात करें।
जो डरता है वही मरता है। जो बीमार होने की सोचता रहता है वह इस नकारात्मक सोच के कारण ठीक भी नहीं हो पाता।
उम्मीद को कभी न छोड। स्वस्थ विचार रखेंगे तो शरीर भी स्वस्थ हो जाएगा। हां, इसके साथ जरूरी परहेज, उपचार, आहार, वातावरण पर भी ध्यान दें ताकि आपके आशावादी विचार और ये सब मिलकर आपको पूरी तरह स्वस्थ रख सकें। अपने आशावादी विचारों के साथ अपने आराध्यदेव को भी कभी न भुलाएं। उससे भी स्वस्थ रखने की प्रार्थना करें। दवा व दुआ अवश्य काम करेंगे। (विनायक फीचर्स)
रिश्तों में संतुलन रखना आवश्यक - डॉ. फौजिया नसीम शाद
हमारे जीवन में रिश्ते क्या मायने रखते हैं उससे प्राय: सभी लोग परिचित हैं अपने रिश्ते में अपने साथी के प्रति या कोई अन्य रिश्ते के प्रति पजेसिव होना जहाँ आपके प्रेम भाव को अभिव्यक्त करता है वहीं आपका ओवर पजेसिव होना आपके कमज़ोर व्यक्तित्व और कमज़ोर रिश्ते की नींव को भी अभिव्यक्त करता है, और वैसे भी रिश्ता हो या कोई चीज़ हर चीज़ अपनी हद में अच्छी लगती है और अपनी हद से बाहर निकलने वाली चीज अपना महत्व खो देती हैं, इसलिए अपने रिश्ते में आवश्यक संतुलन बना कर रखें, ओवर पजेसिव होना नारी हो या पुरुष दोनों के लिए किसी भी रूप में सही नहीं कि जरूरत से ज़्यादा प्रेम या अपने साथी को खोने का डर व्यक्ति को पजेसिव बनाता है।
आवश्यकता से अधिक अपने साथी पर हक़ जताने की कोशिश करना, रोकना टोकना, अपनी मर्जी अपनी खुशी को अपने साथी पर थोपना, इमोशनली ब्लैक मेल करना रिश्ते की खूबसूरती को ख़त्म कर उसे बदसूरत बना देती है परिणाम स्वरूप रिश्ता अपनी गरिमा, प्रेम विश्वास सब गंवा बैठता है ,वास्तव में रिश्ते वही कामयाब होते हैं जहाँ पर दो लोग खुल कर अपने सुख-दु:ख एक दूसरे से सांझा करते हो, एक दूसरे का सम्मान करते हो एक दूसरे की इच्छाओं को सम्मान देते हो, विश्वास का वो अटूट रिश्ता हो जो कभी न टूटे, अपनी खुशी के लिए अपनी आत्म संतुष्टि के लिए अपने रिश्ते को दांव पर लगाना उचित नहीं, अपने रिश्तों में ओवर पजेसिव होने से हमेशा बचे। अपना जीवन जिए और अपने साथी को भी जीने दे।
ओवर पजेसिव होने से होने वाले नुकसान
* रिश्तों में फ़ासलों को उत्पन्न करता है।
* अपने ओवर पजेसिव स्वभाव के कारण स्वयं को अकेला महसूस करता है 
* मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
* एक दूसरे को न समझने की पीड़ा दोनों को ही मानसिक पीड़ा पहुंचाती है।
* अपने साथी पर ज़बरन या इमोशनल रूप से ब्लैक मेल करने से अच्छा भला रिश्ता एक अफ़सोस और पछतावे में परिवर्तित हो जाता है।
* अधिकार जमाने और अपने साथी को खो देने का भय स्थिति को और भी अधिक जटिल बना देता है।
* ज्ञात रहे प्रेम बंधन पसंद नहीं करता वो जितना स्वतंत्र होता है उतना ही प्रगाढ़ होता है और इसके विपरीत जब प्रेम में प्रतिबंध लगता है तो रिश्तें में फ़ासला आना और दरार पड़ना सुनिश्चित हो जाता है जो आगे चल कर रिश्ते  के टूटने की वजह बनता है।
क्या करें - 
* अगर आप ओवर पजेसिव हैं तो आपको चाहिए कि आप अपने व्यवहार पर गम्भीरता से सोचें और स्वयं में बदलाव लाने का सकारात्मक प्रयास करें।
*अपनी नकारात्मक सोच को बदले और अच्छी सोच को स्वयं में विकसित करें।
* एक स्वस्थ संबंध के लिए बहुत आवश्यक है कि दोनों ही एक दूसरे की प्राथमिकताओं को, उनकी व्यक्तिगत रूचियों को, उनकी पसंद नापसंद को महत्व प्रदान करें।
*विश्वास रिश्ते की नींव है और वो तभी मज़बूत होती है जब साथी एक दूसरे पर विश्वास और एक दूसरे का सम्मान करते हैं, और जिस रिश्ते में विश्वास और सम्मान नहीं होता वो रिश्ता केवल एक अपमान होता है जिसका होना न होना मायने नहीं रखता।
* अपने साथी को अपनी इच्छानुसार ढालने का प्रयास बिल्कुल भी न करें , बदलाव की इच्छा रखते हैं तो स्वयं को बदले न कि दूसरे को।
* जब कोई रिश्ता बहुत प्रयत्न और प्रयास के उपरांत भी शंकाओं और आशंकाओं में घिरा हुआ महसूस हो और बार-बार अवसर देने के बाद भी निराशा ही हाथ लगे तो उस रिश्ते में ख़ामोशी की दीवार खड़ी कर लें,
क्योंकि रिश्ते में विश्वास न होना वैसे भी रिश्ते के होने न होने के बराबर है।
* अपने साथी को बदलने का प्रयास बिल्कुल भी न करें वो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकारें। (विनायक फीचर्स)

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