पैजनियाँ अभिमान करे - अनिरुद्ध कुमार

 
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जिनके पगमें झुकती दुनिया।
उस पाँव विराजत पैजनिया।
यह प्रेम अलौकिक मोहनिया।
पग चूम रही यह जोगनिया।

जग भूल गयी मुख राम कहे।
जपती रटती पग धाम कहे।
नित मोहित हो पग ध्यान धरे।
सुर ताल लगा नित गान करे। 
 
रघुनाथ लला अठखेल करें।
खुश होकर के कर ताल भरें।
मनमोहन का यह ख्याल करे।
रुनके झुनके मन प्रीत झरे।

कर से धर लें अनुराग जगे।
यह पावन सुंदर राग लगे।
पगली बिहसे नव धार लगे।
यह जीवन सागर पार लगे।

मन प्रेम बसा पग चूम रही।
चख राम रसायन झूम रही।
भगवान सदा मुसकान भरें। 
हँस पायल का गुनगान करें।

पग राम लला दरबार लगे।
इस जीवन का उपहार लगे।
यह प्यार सदा गल हार लगे।
पग पायल का उदगार लगे।

यह रोज नया अनुष्ठान करे।
पग लोट सदा रस पान करे।
हँस जीवन का बलिदान करे।
पग पैजनियाँ अभिमान करे।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
 

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