पलटूराम की राजनीति (व्यंग्य) - विवेक रंजन श्रीवास्तव

 
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utkarshexpress.com - पलट पलट कर पलटूराम जो कुछ भी करते हैं जनता के लिये करते हैं । सोते जनता के हित के लिये हैं , जागते जनता के भले के लिये हैं । करवट भी जनता के हितार्थ ही बदलते हैं । एक करवट लेते हैं तो लालटेन की रोशनी में लालू दिखते हैं । उन्हें सुनाई देता है , "जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक रहेगा बिहार में लालू" । कोई उनके कान में कहता है, अरे ये तो चारा खाते हैं । वे उसे समझाते हुये कहते हैं ये बोलो कि , "चारा तक खाते हैं , हवालात जाने को तैयार रहते हैं , पक्के समाजवादी जो हैं " ।  वे गठबंधन कर डालते हैं । जनता यह सोचकर खुशियां मनाती है कि अब दो धुर्र समाजवादी जुड़े हैं अब समाजवाद आयेगा ।
वे जगती आंखों सपना देखते हैं । उन्हें लगता है बिस्तर कुछ छोटा है , गद्दा आरामदेह नहीं है । मखमली गद्दे , गुदगुदी रजाई में बिना चूं चर्र किये बड़े पलंग पर बिना करवट बदले चैन की नींद लेने का ख्वाब हकीकत में बदलने के लिये जनता को जगाना होगा । समझ आता है यह अकेले तो न हो पायेगा । वे अपनी कुर्सी पर बैठे बैठे ही अगली बड़ी कुर्सी की लड़ाई लड़ने के लिये अपने जैसे कई छोटे छोटे जनता के सेवको को जोड़ने के लिये बुलौआ करते हैं। सबको बात जंचती है। गठबंधन हो भी जाता है। पर गठबंधन में सभी खुद को बाकी से बड़ा समझते हैं । कोई इनकी अगुवाई मानने को तैयार नहीं होता इसलिये यह सारी मशक्कत बेअसर रह जाती है ।
इससे पहले कि जनता के भले का कुछ हो पाता उन्हें भान होता है कि लालू तो अपने बेटे को ओढ़ाने के लिये उनकी ही रजाई खींच रहा है । वे चेत जाते हैं । करवट बदलते हैं । वे पक्के समाजवादी हैं , उन्हें बंद दरवाजे खोलने की कला आती है । उन्हें जनता की सेवा से मतलब है , किसके साथ रहकर यह हो सकता है यह उनके लिये गौण है । कचौड़ी का नया आफर  लिये वे मजे से आलू वाला समोसा प्लेट से अलग कर देते हैं । रबड़ी जलेबी का मजा मार के पलट गये पलटूराम,  मुख्यमंत्री रहते हुये मुख्यमंत्री बनने के लिये , मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देकर उसी दिन फिर मुख्यमंत्री बन जाते हैं। जनता फिर खुशियों में खो जाती है ।(विभूति फीचर्स)

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