गिद्ध का मांस भी खाते है लोग - सुभाष आनंद

 
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Utkarshexpress.com - यदि आपको कहे कि फलाना आदमी गिद्ध के मांस का सेवन करता है तो आपको कितना विचित्र लगेगा। मुर्गा, बकरे, कबूतर, तीतर, बतख इत्यादि का मांस खाने की बात आम है पर गिद्ध के मांस का सेवन करना आम जनता में जमता नहीं है लेकिन आज तक किसी मानव सभ्यता का उल्लेख सामने आया नहीं है जो गिद्ध के मांस का भक्षण करती हो। मगर यह कटु सच्चाई है कि कुछ गांवों में बसे आदिवासी लोग गिद्धों का भोजन करते है। 
आंध्र प्रदेश के बपाटला कस्बे के बांदा क्षेत्र के रहने वाले आदिवासी गिद्धों को बड़े शौक से खाते हैं या फिर उनका अचार डालते हैं यदि यही नहीं वह कौवों का भी मांस खाते है। कौवा पक्षी चालाक होने के कारण जल्दी में हाथ में नहीं आता। अत:  वह गिद्धों को ही अधिक पकड़ते हैं और उसके मांस को बड़े शौक से खाते हैं। लेखक को बताया गया कि आज से 40 वर्ष पहले लोग गिद्ध के मांस को छूते तक नहीं थे इसके पश्चात न जाने किन कारणों से यहां के लोगों ने गिद्ध का मांस खाना शुरु कर दिया। इन क्षेत्रों में गिद्धों का शिकार इसी तरह बढ़ा कि अब यहां पर कोई-कोई गिद्ध ही नजर नहीं आते है। 30-40 किलोमीटर के इर्द-गिर्द गिद्ध देखने को नहीं मिलते जबकि अन्य पक्षी बतख, हंस, तीतर, बाज खूब मिलते हैं। पूछने पर बताया गया कि आदिवासी इन पक्षियों का शिकार नहीं करते। भारी शरीर वाले गिद्धों को पकडऩे के लिए बांदा आदिवासी लोग लकड़ी की चौखट वाले काफी पक्के धागे से जाल बुनते हैं। यह जाल इतने बड़े एवं मजबूत होते हैं कि एक ही बार में 10-15 गिद्धों को पकड़ लिया जाता है। प्राय: गिद्ध झुंडों में फिरते है इस बात का लाभ शिकारियों को मिलता है। उल्लेखनीय है कि जब गिद्ध उड़ता है तो थोड़ी देर जमीन पर भागता है। वह सीधी उड़ान नहीं भर सकता। वह भारी शरीर होने के कारण तेज नहीं भाग सकता इसीलिए आदिवासियों के जाल में बड़ी शीघ्रता से फंस जाते हैं। गिद्ध आसमान में काफी ऊंचा उड़ता है।
उड़ते गिद्धों को पकडऩा इतना आसान नहीं होता। बांदा निवासी केवल बड़े-बड़े गिद्धों के मांस को ही नहीं खाते बल्कि उनके बच्चों को भी अपने आहार का हिस्सा बनाते हैं। लेखक को बताया गया कि मादा गिद्ध के अण्डों को भी भोजन का अंग बनाया जाता है। गिद्धों के बच्चों और उनके घोसलों में अण्डे प्राप्त करने के लिए शिकारियों को ऊंचे-ऊंचे वृक्षों के ऊपर चढऩा पड़ता है। गिद्धों का शिकार करते समय आदिवासी झुण्डों में जाते हैं और कभी-कभी उनकी खोज के लिए कई कोस पैदल चलना पड़ता है, कभी-कभी गिद्ध हाथ में न आने के कारण कौवों का शिकार करना पड़ता है। बताया गया है कि गिद्धों की कई श्रेणियां एवं प्रजातियां होती है। आदिवासी सभी प्रकार की प्रजातियों का मांस खा लेते हैं लेकिन चमर गिद्ध, राज गिद्ध, गोवर गिद्ध का शिकार कुछ ज्यादा करते हैं। बपाटला क्षेत्र में गिद्ध मनुष्य से काफी डरते हैं। गिद्धों ने अपने घोसले बनाना भी छोड़ दिया है। गिद्धों के बड़े शिकार के कारण गिद्धों की कई प्रजातियां लुप्त होने के कगार तक पहुंच गयी है। क्षेत्र में मरे हुए जानवरों के शव खुले पड़े रहते हैं जिसके कारण बदबू फैलने का खतरा बना रहता है इससे प्रदूषण फैलना आरंभ हो चुका है। (विनायक फीचर्स)
 

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