तस्वीर - सुनील गुप्ता

 
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 ( 1 )" त ", तत्त्वत:
      जो दिखता तस्वीर में,
      शायद, उससे हूँ मैं बेहतर  !
      ये मेरा छायाचित्र नहीं, बल्कि.....,
      गया उकेरा हूँ एक चित्रकार की नजर !!

( 2 ) " स् ",स्वयं 
       को स्वयं से जानना,
       और समझना है आसां नहीं  !
       पहले, इसके कि, हम जानें स्वयं को.,
       देखना पड़ता स्वयं को बनके दृष्टा यहीं !!

( 3 ) " वी ", वीक्षणीय 
        है स्वयं को देखना,
        और परखना समय-असमय पे  !
        कब क्या कैसे हो रहा परिवर्तन....,
        है ये सब जानना, जरूरी यहाँ पे !!

( 4 ) " र ", रहिए 
      सदैव बनके जागरूक,
      और खोजते रहें स्वयं को स्वयं से  !
      हो जाएंगे आप ये सब देख-जान विस्मित..,
      कि,ये हो रहे परिवर्तन हैं सभी कुछ हटके!!

( 5 ) " तस्वीर ", तस्वीर में 
  अपनी ही तस्वीर ढूंढ़ता,
  खोजता हूँ, सदा अपने अक़्स को  !
  यहाँ खुद का खुद से परिचय करवाना,
  उससे मिलना और अपने को टटोलना..,
  है एक टेढ़े-मेढे पथ पे चलने जैसा मानो !!

( 6 ) " तस्वीर ", तस्वीर देख 
   कभी लगता है जैसे,
   कि, स्वयं को लिया है बखूबी पहचान  !
   किन्तु, अगले ही पल, ये सब लगता बेमानी,
   कि,इस स्वयं की खोज में जाऊंगा कहाँ तक,
   अब, ये नियति ही जाने, हूँ मैं बना अंजान !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान
 

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