चंचल मन - सुनील गुप्ता

 
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है चंचल मन
ये चले उड़ता !
ठहरे कहीं नहीं....,
और मन की करता !!1!!

मन जो सोचे
हो अच्छा सही !
ये जरुरी नहीं.....,
हो दिखता, जैसा वही !!2!!

सुनें मन की
दिमाग़ से सोचें !
करते चलें वही.....,
अच्छा जो भी होये!!3!!

मन से मन
नहीं आए पकड़ !
करें थोड़ा चिंतन......,
पड़ जाए ढीली अकड़ !!4!!

चलें समझाए 
सदैव मन को  !
और रहें हर्षाए......,
भजते श्रीप्रभु हरि को !!5!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान
 

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