कवि पंडित श्रद्धा राम फिलौरी - डॉ जसप्रीत कौर फ़लक
हे! संत साहित्य सरोवर के, मैं तुझ पे अभिमान करूँ,
अर्पण करके क़लम मैं तुझको, हृदय से सम्मान करूँ॥
सहज सरल व्यक्तित्व तुम्हारा, साहित्य अद्भुत रचा न्यारा,
बहायी प्रेम की रस-धारा, शत-शत मैं प्रणाम करूँ॥
विश्व-विख़्यात लिखी आरती, सभी के हृदय को जो ठारती,
नत-मस्तक हैं सभी भारती, मैं भी उसका गुण गान करूँ॥
ज्ञान के तुम तो हो चैतन्य,अदभुत तुम ने रचा है साहित्य
चमके जैसे हो आदित्य, ख़ुद को मैं कुरबान करूँ॥
शब्दों में बहते भाव सुनहरे, कुछ सहज हैं, कुछ हैं गहरे,
जो काग़ज़ पर आ कर ठहरे, मैं उनका रस-पान करूँ ॥
ज्ञान की गहरी पैठ बनाई, साहित्य की सेवा खूब निभाई,
शब्दों की वो ज्योति जलाई, निस दिन उसे बयान करूँ॥
मन व्याकुल है तुझ को खोकर, रचनाओं के हार पिरो कर,
हर्ष-विषादों से मुक्त हो कर, पल-पल तेरा ध्यान करूँ॥
- डॉ जसप्रीत कौर फ़लक, लुधियाना , पंजाब