रक्ताभ गुलमोहर - सविता सिंह
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कभी सस्मित, कभी विस्मित,
देख उसे होती तनिक चकित
ग्रीष्म की झुलसती तपिश में
कैसे मुस्काता लाल गुलमोहर का वृक्ष।
क्या उसे नहीं संज्ञान
या वो गर्मी से बेहद अनजान
देता पनाहों में शांति असीम
दिखता नहीं उस पर रवि का कहर
मुस्काता रहता भर दिन दोपहर
लगता जैसे नवविवाहिता
खड़ी है लाल चुनरी पहन कर।
कितना ओज़ से भर देता
ग्रीष्म का ताप भी हर लेता
देता नित नया आयाम
कष्टों में भी रहो ऊर्जावान।
सूर्य की स्वर्णिम किरण
और उसका रक्ताभ रंग
भरता जीवन में हौसला और उमंग।
खुद को बोकर खुद ही उगाया है
तभी लाल रंग से दमकती उसकी काया है।
सीमित साधनों में भी विराजमान
देता है वो सबको ज्ञान।
इच्छा शक्ति हो अगर दृढ़
भगवान भी देंगे वरदान
इंद्रधनुष से अंजुरी भर कर
चटक लाल रंग लाया है
ग्रीष्म की झुलसती तपिश में
लाल गुलमोहर मुस्काया है|
- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर