रंगीला फागुन - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

 
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फागुन का जब लगे महीना, मन हो मालामाल।
रंग-रंगीला मौसम करता, जन-जन को खुशहाल।
पीली सरसों दिखलाती है, नींबू जैसा रंग,
टेसू से कुदरत देती है, रंग सुहाना लाल।
छटा सुनहरी है महुए की, करती गंध कमाल।
आम्र मंजरी लद वृक्षों पर, मन को करे निहाल।
कोयल कूके अमराई में, दिन हो या फिर रात,
स्वरलहरी के द्वारा वो नित, लेती पिय का हाल।
जीर्ण पर्ण गिर जाते खुद ही, जब ऋतु बदले चाल।
हर पादप को शोभित करते, उगकर नए प्रवाल।
मधुमासी मौसम में मोहक, दिखते ढेरों रंग,
ढोलक थापों पर हो फगुआ, संग बजें खड़ताल।
पर्व अनूठा है होली का, दमकें सबके भाल।
बाल-वृंद या नर-नारी उर, रखते नहीं मलाल।
मन के मैल दूर हो जाते, खुलतीं दिल की गाँठ,
प्रेम भाव जब हृदय बसे तो, होते लुप्त बवाल।
बरसाने में होली खेलें, कान्हा, ग्वालिन ग्वाल।
भक्ति भाव में डूब यहाँ पर, होता खूब धमाल।
रास-रंग में डूबीं राधा, वासुदेव बरजोर,
नेह रंग में रँगे युगल की, शोभा बड़ी विशाल।
सबको रँगने को सब आतुर, कर लेकर चित्राल।
भंग तरंग उठाती तन में, करती आँखें लाल।
तरह-तरह के पकवानों का, लगता प्रभु को भोग,
सब होली की करें प्रतीक्षा, मन से सालों-साल।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश

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