नागरिकों के हिरासत व जमानत संबधी अधिकार - डॉ. श्याम भारती

 
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utkarshexpress.com- समाज में न्याय व्यवस्था बनाये रखना राज्य सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है। देश के संविधान के मुताबिक प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार और जीवित रहने का अधिकार है। संविधान द्वारा प्रदत नागरिकों का मूलभूत अधिकार है कि बिना अभिभोग के किसी को सजा नहीं दी सकती और दोषी व्यक्ति को केवल उतनी ही सजा दी जा सकती है जितना कानून में प्रावधान है। किसी दोषी व्यक्ति को किसी एक विशेष अभियोग में दो बार सजा नहीं दी जा सकती है।
सामाजिक अव्यवस्था तथा अपराधिक व असामाजिक तत्वों से जनता की सुरक्षा के लिए पुलिस विभाग की रचना की गई है। परंतु कई बार कानून प्रदत इन शक्तियों का पुलिस विभाग के कुछ कर्मियों द्वारा दुरूपयोग किया जाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि हर व्यक्ति यह जान सके कि पुलिस द्वारा बन्दी बनाए जाने पर जमानत संबंधी अधिकार क्या है।
अधिवक्ता एसपी सिंगला के मुताबिक पुलिस विभाग को बंदी बनाने का अधिकार है परंतु यह अधिकार असीमित नहीं है। कानून में यह व्यवस्था है कि समुचित कारण होने पर या अपराध जघन्य होने पर ही पुलिस किसी व्यक्ति को बंदी बना सकती है। अपराध की दो श्रेणियां मुख्य हैं। संज्ञेय अपराध व असंज्ञेय अपराध।
संज्ञेय अपराधों के मामले में पुलिस बिना किसी वारंट के संदिग्ध अपराधी को गिरफ्तार कर सकती है। इनमें हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे अपराधों के दोषी, चोरी-डकैती के अभियोगी, इश्तहारशुदा भगोड़े, जेल से फरार कैदी, सेना से भागे हुए व्यक्ति आदि शामिल हैं, गंभीर चोट पहुंचाना, नाजायज शराब निकालना व रखना आदि संज्ञेय कोटि के अपराध हैं।
असंज्ञेय अपराधों में छोटे-मोटे व्यक्तिगत अपराध जैसे किसी पर बिना चोट पहुंचाए हमला करना, किसी की मान हानि करना या किसी को गाली देना। गैर कानूनी तौर पर दूसरी शादी करना आदि शामिल है। इस प्रकार के असंज्ञेय अपराधों का पुलिस अन्वेषण या तहकीकात बिना इलाका मजिस्ट्रेट से आदेश प्राप्त किए नहीं कर सकती।
गिरफ्तार होने पर अपराधी के अधिकार - 
अपराधी को अधिकार है कि उसे यह जानकारी दी जाए कि उसे किस अपराध में गिरफ्तार किया जा रहा है। अगर उसे वारंट के आधार पर गिरफ्तार किया गया हो तो यह उस वारंट को देख व पढ़ सकता है। वह वकील को बुला कर सलाह ले सकता है। गिरफ्तार होने के 24 घंटों के भीतर उसे अदालत में पेश किया जाना चाहिए। उसे यह जानकारी दी जाए कि वह जमानत ले सकता है या नहीं। अगर अदालत द्वारा  उसे पुलिस हिरासत में रखने का आदेश हो तो वह अपना डाक्टरी मुआयना किसी सरकारी अस्पताल से करा सकता है। पुलिस उसे किसी ऐसे बयान को देने के लिए बाध्य नहीं कर सकती जो अदालत में उसके खिलाफ साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि 24 घंटों के दौरान उसके साथ कोई अत्याचार या जोर जबरदस्ती की गई हो तो वह इलाका मजिस्ट्रेट को इस बारे में बता सकता है व उचित आदेश  प्राप्त कर सकता है।
महिला अपराधी के अधिकार - 
महिला अपराधियों को कुछ अतिरिक्त अधिकार हासिल हैं। महिला अपराधी को महिला पुलिस की ही हिरासत में रखा जा सकता है। किसी महिला को किसी अपराध की पूछताछ के लिए सूर्यास्त के बाद या सूर्यादय से पहले किसी भी पुलिस स्टेशन या चौकी में नहीं बुलाया जा सकता और पूछताछ के वक्त महिला पुलिस का उपस्थित रहना आवश्यक है। किसी भी महिला अपराधी की डाक्टरी जांच महिला डाक्टर द्वारा ही करवाई जा सकती है। किसी गिरफ्तार महिला की तलाशी केवल महिला ही ले सकती है। घर की तलाशी लेते वक्त महिला को अधिकार है कि तलाशी लेने वाली महिला अधिकारी या अन्य अधिकारी उस महिला को बाहर आने का समय दें।
उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्देश जारी किए गए है कि अपराधी को सामान्यतया हथकड़ी नहीं लगाई जाएगी। उचित कारणों पर ही जैसे अपराधी द्वारा भागने की कोशिश या अपराधी के हिसंक होने की स्थिति या किसी ऐसे उचित कारण होने पर व लिखित रूप से आदेश प्राप्त करने पर ही अपराधी को हथकड़ी लगाई जा सकती है।
जमानत के अधिकार - 
जमानत के अधिकार को आधार मानकर, अपराधों को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है।
1. धारा 436 सीआरपीसी-जमानत योग्य अपराध जिसमें जमानत प्राप्त करना अधिकार है।
2. धारा 437 सीआरपीसी-बिना जमानत योग्य अपराध जिनमें जमानत देना या न देना अदालत की इच्छा पर निर्भर करता है।
धारा 436 सीआरपीसी जमानत योग्य अधिकार की श्रेणी में आने वाले केसों में अपराधी जमानत करवाने का अधिकार रखता है और अगर वह मजिस्ट्रेट या पुलिस द्वारा मांगी गई जमानत देता है तो उसे जमानत पर रिहा करना आवश्यक है।
धारा 437 सीआरपीसी गैर जमानत योग्य अधिकार के अंतर्गत अपराधों में जमानत सिर्फ अदालतों द्वारा दी जाती है और अदालत द्वारा अपराध की गंभीरता साक्ष्य को सुरक्षित रखना इत्यादि बातों को ध्यान में रखते हुए जमानत अर्जी मंजूर या नामंजूर की जा सकती।
धारा 53-54 सीआरपीसी के अधीन अपराधी की डाक्टरी जांच पुलिस अधिकारी अदालत में दरख्वास्त देकर अपराधी का डाक्टरी मुआयना करवा सकता है ताकि उस डाक्टरी सर्टिफिकेट को वह साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल कर सके। जैसे बलात्कार के अपराध में व शराब पीने का साक्ष्य प्राप्त करने के लिए भी डाक्टरी जांच का आदेश अदालत से हासिल कर सकता है।अपराधी स्वयं भी अपनी डाक्टरी जांच के लिए अदालत को प्रार्थना पत्र दे सकता है। ताकि वह यह साबित कर सके कि उस पर पुलिस द्वारा ज्यादती या मारपीट की गई है। बलात्कार इत्यादि अपराधों की शिकार महिलाएं अपनी डाक्टरी जांच करवाने में पुलिस से आमतौर पर सहयोग नहीं करती। उन्हेें ऐसी जांच के लिए बाध्य तो नहीं किया जा सकता लेकिन नतीजन आवश्यक साक्ष्य की कमी रह जाने के कारण अपराधी कानून के शिकंजे से छूटने में सफल हो जाता है और समाज में अंसामाजिक तत्वों को बढ़ावा मिलता है।
धारा 438 सीआरपीसी के अधीन अग्रिम जमानत - 
गैर जमानती अपराधों में अग्रिम जमानत का भी प्रावधान है। इस कानून की धारा के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जिसके विरूद्घ गैर जमानती अपराध का मुकदमा दर्ज किया गया हो सेशन अदालत या उच्च न्यायालय में  अग्रिम जमानत करवाने के लिए अर्जी दे सकता है। अदालत मुकदमें के विभिन्न पहलुओं को देखते हुए शर्तो पर या बिना शर्त के अग्रिम जमानत मंजूर या नामंजूर कर सकती है। अगर कोई अपराधी स्वयं वकील का खर्च सहन करने में असमर्थ है तो उसे सरकारी खर्चे पर वकील अदालत द्वारा दिलाया जा सकता है। बल्कि अदालत स्वयं भी इस बात के लिए बाध्य है कि यदि किसी अपराधी के पास वकील न हो तो स्वयं उसे सरकारी खर्चे पर वकील करने की आज्ञा दें इसके अलावा कई राज्य सरकारों द्वारा स्थापित कानूनी सहायता समितियां भी गरीब, निस्सहाय महिलाओं, अनुसूचित जाति व जनजातियों के लोगों इत्यादि को सरकारी खर्चे पर वकील तथा मुकदमें के अन्य खर्चे उनके आवेदन करने पर वहन करती है।  (विनायक फीचर्स)

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