ऋतुराज बसंत - कालिका प्रसाद
Feb 16, 2024, 20:14 IST
इस धरा धाम पर आ गया है,
धरती पर छा गया ऋतुराज वसंत।
गुनगुनी धूप खिलने लगी है,
शिशिर ऋतु का अंत हो गया है।
धरती नई नवेली सी लगती ,
बसन्ती चूनर है ओडे।
कोमल कदम उठा चले,
धरती सुंदर श्रृंगार किये है।
मधु की मादक सुगंध से,
महका उठी है ये धरती।
कली कली अलसा रही,
भ्रमर कर रहे डाली डाली गुंजार।
स्वागत फूलों का कर रही,
तितली आकर उनके पास।
मादक गंध उड़े मधुर,
सुखद बड़ा अहसास।
बसन्तोत्सव में झूमकर,
ये जगत रहा बौराय।
बासंती तन मन हुआ,
ऋतुपति का करे हम स्वागत।
- कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखण्ड