सावन में - सम्पदा ठाकुर

 
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चल रही पुरवाई, 
तन लेत अंगड़ाई,
पपीहा पीहूक कर,
जियरा जरात है।

सावन की अंधरिया,
में बरसे बदरिया,
कङके बिजुरिया तो
जिया घवरात है।

सावन की बूंद सखी,
तन को भिगोए सखी,
सर्द हवाए मन में,
आग को लगात है।

आए जो याद वैरन,
निंद आए ना ही चैन, 
पिया बिन मोहे नही,
कछु भी सोहात है।
- सम्पदा ठाकुर, जमशेदपुर
 

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