सरसी छंद - अनिरुद्ध कुमार
Fri, 20 Jan 2023

प्रेम प्रीत की खेती बंजर, प्यार आज बेहाल,
चातक बनके भटके प्राणी, जीना है मोहाल।
सुधबुध हारा फिरता मारा, बेचारा बदहाल,
प्रेम रतन धन नहीं पासमें, बन बैठा कंगाल।
प्रेम भाव का है गठबंधन, जीवन हो खुशहाल,
प्रेम जहां पर मन इतराये,जीवन मारे ताल।
प्रेम नहीं ये अमर लतायें, लय में हर सुरताल,
प्रेम सदा जीवन का रटना, प्रेम बदल दे चाल।
प्रेम, प्रीत, लगता बहुरंगी, तनमन करे धमाल,
प्रेम हीन जीवन वीराना, देख उदासी जाल।
प्रेम लगे चीनी से मीठा, मनभावन हर हाल,
प्रेम से बड़ा क्या है जगमें, सूरत हरदम लाल।
प्रेम प्रीत जीवन का रसना, प्रेम बना जयमाल,
प्रेम सदा सर चढ़के बोले, तनिका नहीं मलाल।
जाके दिल में प्रेम विराजे, सबको करे निहाल,
प्रेम सरीखा क्या इस जगमें, प्राणी मालामाल।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड