चमकते सूर्य की तरह - सविता सिंह

 
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सुनो प्रियवर जरा मेरा अनुनय विनय, 
दीप्त माथे पर तुम हुआ तुमसे प्रणय, 
यह महावर ये लाली निशानी तेरी, 
रहूँ संग ही सदा हो न कुछ भी अनय। 

पुष्प पारिजात भी सहे कितनी विरह, 
क्षण भर का मिलन,फिर छुटे हर गिरह,
अंक लग वो अवनि से बिलखती रही,
विलग क्यों वो हुयी करे किससे जिरह। 

प्रेम को हम प्रमाणित करें क्यों भला?
सबरी ने राघव को जूठे बैर दिए खिला,
अटूट भक्ति की शक्ति का था ये असर
श्राप मुक्त हो गयी,जो थी कब से शिला।

हुआ मंत्र और हवन फिर पूर्ण परिणय, 
स्थापित तुझसे सखे हुआ आत्मिक अन्वय,
राघव माधव बन कर आये तुम प्रिये,
संचित मेरी सुधि में हर क्षण हर समय।
- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर
 

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