पावस में सावन - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

 
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रोपे हुए धान अब खेतों को बनायें धानी,
हरियाली चुनरिया छवि को बढ़ा रही।
हवा की हिलोरें सँग पौधे ऐसे झूम रहे,
हरित सागर में लहर जैसे बल खा रही।
धान की फसल जब पक घर आ जाएगी,
घर भण्डार भरें आस ये जगा रही।
कृषक जो श्रम करे उसे शुभ फल मिले,
पावस की ऋतु हमें यह बतला रही।

धन जो किसान पाए उसे ले बाजार जाए 
सबकी जरूरतें वो पूरी कर पाता है।
गृहस्थी की सारी चीजें लाने में समर्थ होता
बाजारों से खरीदी कर मांग बढ़ाता है।
बच्चों के भविष्य की वो सोच निज मन रखे
सक्षम बनाने हेतु शिक्षा वो दिलाता है।
छोटी-मोटी झोपड़ी में जिंदगी बिताई पर
हाथ में जो धन आए घर बनवाता है।

अर्थतंत्र पर पड़े पावसी प्रभाव बड़ा, 
अच्छा मानसून उपभोग को बढ़ाता है।
कृषक कमाए जो भी उसमें बचाए थोड़ा
धन बिना बात कभी नहीं वो लुटाता है।
अच्छे यंत्र सही खाद उपयोग करके वो
मन लगा श्रम कर उपज बढ़ाता है
कहते ‘प्रवीण’ सही सुनो सब मन लगा
भारत की उन्नति से पावस का नाता है।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश
 

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