कहो तो - अनुराधा पांडेय

 
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तुम कहो तो प्राण भी अर्पित करूँ मैं
तूलिका तो सेतु है केवल प्रणय में ।
शब्द वाक्यों से नहीं संबंध मेरा,
मार्ग भर तुम तक पहुँचने के ,रचित ये गीत सारे ।
क्यों समद में डूबना मैंने चुना है,
सीप पाने के निमित मैं ,पी रही हूँ नीर खारे ।
साँस के हर तल्प पर यों दौड़ते तुम
रक्त जैसे दौड़ता हर क्षण हृदय में ।
तूलिका तो सेतु है--
और क्या इससे अधिक बोलूं वृथा भी,
तुम कहो तो श्वास लेना छोड़ दूं मैं ।
एक इंगित भर करो तुम आज प्रियव्रत !
बंध सारे मर्त्य जग के तोड़ दूं मैं ।
होम बनना नित मुझे स्वीकार होगा
सर्वदा संसार में तेरी विजय में ।
तूलिका तो सेतु है-
रक्त धमनी सब तुम्हीं से ही गतिज है,
क्या तुम्हें इस सत्य का अनुमान भी है ।
चातकी की चाँद पर बस टकटकी है,
रंच इसका क्या तुम्हें कुछ ध्यान भी है ?
गा रहीं हूँ गीत मैं हर पल तुम्हारी ,
जानती यह भी न यह लय या अलय में ।
तुम कहो तो प्राण भी अर्पित करूँ मैं ।
तूलिका तो सेतु है केवल प्रणय में ।
-अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली  

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