शरद पूर्णिमा - सुनील गुप्ता
( 1 ) " श ", शशांक
देख, मन मचल उठे,
चाहें, भरना अंक इसे !
और लालायित होकर पाने निकलें..,
खोल, आएं नयन कपाट, मयंक !!
( 2 ) " र ", रहे
राकापति अति बेचैन,
देख चितवत चंद चकोरा, अवाक !
और बनें रहे ये नेत्र, अतृप्त प्यासे..,
बस, चाहें पीना अब सुवर्णरस मृगांक!!
( 3 ) " द ", दवा
औषधियुक्त खीर ये,
सुधा बरसाए, चले आएं सुधांशु !
और जो करे शारदीय खीर का सेवन.,
उसपे चलें बरसाए, आनंद हिमांशु!!
( 4 ) " पूर्णिमा ", पूर्णिमा
की चाँदनी रात,
पूर्ण करे सभी मनोकामनाएं !
और चले नव ऊर्जा शक्ति भरती.,
चहुँओर जीवन में सौरभ खिलाए !!
- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान