गीत (पर्यावरण) -  मधु शुक्ला

 
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सतत   प्रदूषित  होता  रहता , पर्यावरण  हमारा।
नहीं जागरण की कोशिश को, मिलता उचित सहारा।

बात स्वच्छता की करते सब, आगे किन्तु न आते।
उम्मीदें   रखते   भ्राता  से ,  दोषी   उसे  बताते।
जिम्मेदारी अपनी समझो, कहे समय की धारा....... ।

नित्य नये सैलाब उमड़ कर, हमको समझाते हैं।
नहीं समय  पर जो जगते हैं, वे  ही  पछताते हैं।
भँवर भाँप लेते हैं जो जन, पाते वही किनारा........ ।

सहयोगी आचरण हमारा, खुशियाँ ले आयेगा।
दूषित पर्यावरण सहज ही, सुरभित हो जायेगा।
शक्ति एकता को सदियों से, हम सब ने स्वीकारा...... ।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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