गीत (पर्यावरण) - मधु शुक्ला
Updated: Mar 29, 2024, 21:33 IST
सतत प्रदूषित होता रहता , पर्यावरण हमारा।
नहीं जागरण की कोशिश को, मिलता उचित सहारा।
बात स्वच्छता की करते सब, आगे किन्तु न आते।
उम्मीदें रखते भ्राता से , दोषी उसे बताते।
जिम्मेदारी अपनी समझो, कहे समय की धारा....... ।
नित्य नये सैलाब उमड़ कर, हमको समझाते हैं।
नहीं समय पर जो जगते हैं, वे ही पछताते हैं।
भँवर भाँप लेते हैं जो जन, पाते वही किनारा........ ।
सहयोगी आचरण हमारा, खुशियाँ ले आयेगा।
दूषित पर्यावरण सहज ही, सुरभित हो जायेगा।
शक्ति एकता को सदियों से, हम सब ने स्वीकारा...... ।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश