गीत (छंद को मरने न देंगे) - जसवीर सिंह हलधर
मुक्त कविता से कभी हम, गीत को डरने न देंगे ।
युग बहे बेशक विरोधी , छंद को मरने न देंगे ।।
चाँद तारे आसमां पर ,घूमते है एक लय में ।
मुक्त कोई भी नही है ,व्योम गंगा के निलय में ।
घूमती धरती हमारी ,कील पर क्या जानते हो ,
सत्य के इस तथ्य को हम,मिथ्य से वरने न देंगे ।।
मुक्त कविता से कभी हम गीत को डरने न देंगे ।।1
मुक्त शब्दों के चलन को ,साधने को गद्य कहते ।
भाव को लयबद्ध करके , बांधने को पद्य कहते ।
पाणिनी पिंगल सरीखे, देव बटवारा किये है ,
बेतुके आधार पर मौलिक हरण करने न देंगे ।।
मुक्त कविता से कभी हम गीत को डरने न देंगे ।।2
छंद सत्यम और सुंदर, सात स्वर का आवरण है ।
नाद द्वारा ब्रह्म से संवाद का लौकिक वरण है ।
अंतरा मुखड़े बनाये , दर्द में भी लय समाये ,
आँधियों में पुष्प को , तरु से कभी झरने न देंगे ।।
मुक्त कविता से कभी हम गीत को डरने न देंगे ।।3
शब्द संयोजन सृजन में, छंद ही पहला कदम है ।
नियम बिन अक्षर मिलाना ,गद्य है भ्रम है छदम है ।
प्राण का भी नाद से संबंध शाश्वत है सहज है,
कूप में साहित्य को "हलधर" कभी तरने न देंगे ।।
मुक्त कविता से कभी हम गीत को डरने न देंगे ।।4
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून , उत्तराखंड