गीत - मधु शुक्ला 

pic

सबको भाये रूप धरा का, जब से आया फागुन मास।
नव पल्लव से मुख शृंगारित, अदुभुत फैला रहा उजास।

बाग आम के लगे महकने, लुभा रहा महुआ का रूप।
केसरिया परिधान पहन कर, टेसू लगने लगा अनूप।
भू को पीताम्बर देने का, सरसों करने लगी प्रयास.... ।

उपवन कानन सुरभित हैं सब,कोयल सुना रही मधु गान। 
पुष्पों को हर्षित अति लखकर, छेड़ रहे भँवरे मृदु तान।
फाग खेलने की उत्सुकता, सबके मन में जागी खास...।

वायु फागुनी, ऋतु बासंती, का जब-जब होता है मेल।
आनन्दित जन जीवन होता, त्योहारों की चलती रेल।
मेल जोल का प्रचलन बढ़ता, रहता कोई नहीं उदास...।
 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश 
 

Share this story