गीत - मधु शुक्ला 

 
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पल - पल रंग बदलता मौसम, दुखदाई लगता है।
सर्वाधिक मनमानी इसकी, हलधर ही सहता है।

मौसम में बदलाव समय पर, होना स्वाभाविक है।
पर सहसा आक्रामक होना, देता कष्ट अधिक है।
पकी फसल पर बर्फ गिराकर, मौसम खल बनता है।
सर्वाधिक मनमानी इसकी, हलधर ही सहता है..... ।

कम ज्यादा वर्षा से आहत, हलधर खेत सजाये।
उम्मीदों के पुष्प खिलाकर, बीता कल बिसराये। 
कृषक पीर मौसम नहीं समझे, वह तो बस छलता है।
सर्वाधिक मनमानी इसकी, हलधर ही सहता है......।

अति गर्मी सर्दी वर्षा से,  कष्ट सभी को होता।
रो धोकर कैसे भी मानव, मौसम पीड़ा ढोता।
अधिक असर बदले मौसम का, कृषकों पर पड़ता है।
सर्वाधिक मनमानी इसकी, हलधर ही सहता है..... ।
-  मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश 
 

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