गीत - मधु शुक्ला

 
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परमपिता की वंदना , कर मन सुख पाता।
सत्य मार्ग हमको सदा, ईश्वर दिखलाता।

ज्ञात हमें जब बात यह, वह ऊपर वाला।
संचालक संसार का, पालक  है  आला।
लोभ मोह तज क्यों नहीं, मानव गुण गाता....... ।

पत्ता जब हिलता नहीं, बिना इशारे के।
आश्रित  रहते  हैं  सभी, ईश सहारे के।
फिर क्यों उसको भूलकर, दम्भी पछताता....... ।

जीवन का उपहार जो, ईश्वर से पाया।
सदुपयोग उसका करो, नश्वर है काया।
नहीं दुवारा लौटता, जो जग से जाता........ ।
 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश 
 

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