गीत - मधु शुक्ला

 
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तुम वादा कर के भूल गए, हम आस लगाए बैठे हैं,
धनहीन न होगा अब कोई, यह स्वप्न सजाये बैठे हैं।

भारतवासी सब सम होगें, कम अधिक न होगा अब कोई,
क्षमतानुसार  यश  पायेंगे,  आगे  भविष्य  में  सब  कोई,
मिलने को रोजगार से हम, बेहद अकुलाए बैठे हैं..... ।

निर्भयता से मेरी बहनें, घर बाहर जीने पायेंगीं,
होगें दहेज के लोभी जो, घर उनके कभी न जायेंगीं,
जाग्रत समाज छवि देख सकें, हम आँख बिछाए बैठे हैं.... ।

ईमानदार सेवक सच्चे, संसद में सभी विराजेंगे,
जनहित प्यारा होगा उनको,वे पद का मोह न पालेंगे,
करने को अभिनंदन उनका, हम शीश झुकाए बैठे हैं....।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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