गीत - मधु शुक्ला

 
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संसारी कागज की कश्ती, पर यात्राएं करते हैं।
ज्ञान नहीं होता है कल का, सदियों का दम भरते हैं।

सपनों की लम्बी सूची का, बोझ उठाकर कंधों पर।
रैन बसेरा करते हैं सब, ख्वाबों के तटबंधों पर।
राम नाम की हम मेवा तज , घास मोह की चरते हैं..... ।

सांसों की डोरी पर अंकुश, नहीं हमारा होता है।
कर्म हीनता फिर भी गहकर ,जीव आलसी सोता है।
कागज की कश्ती जब डूबे, अश्रु आँख से बहते हैं.... ।

ईश्वर नाविक है इस जग का, नैया पार लगाता वह।
भव सागर के दुर्गम पथ पर, चलना हमें सिखाता वह।
मिले सहारा जब ईश्वर का, जीव तभी तो तरते हैं...... ।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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