गीत - मधु शुक्ला
Nov 20, 2024, 22:28 IST
प्रेम पुष्प रखता है सुरभित, सब के जीवन उपवन को।
मंडित यह अनुपम आभा से, हर पल रखता आनन को।
संबंधों का मूल प्रेम है, मूल बिना ये मुरझाते।
अपनेपन की खाद मिले जब, रिश्ते तब ही मुस्काते।
सज्जित उत्साह, उमंगों से, प्यार करे मानव मन को..........।
ताना बाना अवसादों का , स्पर्श प्रेम का काट रहा।
जीवन पथ के दुख के गड्ढे , स्नेह वचन पट पाट रहा।
प्रेम सहारा मिल जाये यदि, भाव न दे मन अड़चन को .........।
एकाकी नीरस जीवन की , कौन कल्पना करता है।
हर कोई जीवन चित्रों में, रंग प्रीति के भरता है।
नेह जहा उपलब्ध हमें हो , झुके वहीं सिर वंदन को .........।
--- मधु शुक्ला .सतना, मध्यप्रदेश