गीत - प्रियदर्शिनी पुष्पा

 
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योजना जब-जब बनाते इक नये अध्याय का।
वेदना का दान तुम देते सदा पर्याय सा।।

मानते अपना जिन्हें हम आत्मा करके समर्पण।
एक दिन कर दें कहीं न आपके ही भाव तर्पण।।
उस विषम पीड़ा प्रहर में प्रेम का  अभिप्राय क्या।
वेदना का दान तुम देते सदा पर्याय सा।।

भाग्य के टूटे सितारे आ गिरे अंचल हमारे।
वो हृदय की अल्पना बिखरा गये फिर से सकारे।।
पीर ही तकदीर हो तब स्वल्प क्या अधिकाय क्या।
दर्द आँसू दान में देते सदा पर्याय सा।।

हर्ष की अभिव्यंजना को पल झटकते तोड़ देना।
भाव के आयात से अंजान बन मुँह मोड़ लेना।
गुण अगर हो तोड़ना तब न्याय क्या अन्याय क्या।
वेदना का दान तुम देते सदा पर्याय सा।।

जो चरम तक थे समर्पित अंततः घायल वही थे।
तब नियति में अश्रुओं से संधि को माना सही थे।।
वक्ष शर से जब बिंधे आगाज़ क्या परिणाम क्या।
वेदना का दान तुम देते सदा पर्याय सा।।
- प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर
 

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