गीत -  रक्षाबंधन

 
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रिश्ता पावन भ्रात बहन का, अनुपम ईश बनाया है।
बात यही हमको समझाने,  रक्षाबंधन  आया  है।

खट्टी मीठी यादें ढेरों, भ्रात बहन के मन बसतीं।
आकर सम्मुख वे अक्सर ही, नयन नीर से मिल हँसतीं।
रेशम के कोमल धागों ने, यादों को महकाया है...... ।

दूर रहें पर भूल न पायें, सुधियाँ बाबुल आगन कीं।
जोड़ रखें मन को घटनायें, बीते प्यारे बचपन कीं।
प्रेम, त्याग का पोषण पाकर, बंधन यह हर्षाया है........ ।

परिवर्तन का नाम प्रकृति है , सभी जगह मिलते रहते।
संस्कारों  के  धागे  हरदम, संस्कृति  को  बुनते  रहते।
कर्तव्यों के परिचायक ने, प्रीत रीत को गाया है...... ।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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